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परमपूज्य गुरुदेव के जीवन का संक्षिप्त विवरण :- परमपूज्य गुरुदेव तांत्रिक शशि भैरव जी महाराज जी का जन्म भारत के उस भूमि पे हुआ है जो सदियों से पूरे संसार को अपने ज्ञान और विज्ञान से प्रकाशित करते आया है, गुरुदेव जी का जन्म पवित्र भूमि बिहार के मिथिलांचल में 1986 में एक जानेमाने जमींदार परिवार में हुआ, ये अपने परिवार में तीन भाई और चार बहनों में सबसे छोटे है जिस कारण बड़े ही लाड़ प्यार से पले बढ़े खास कर इनके दोनो भाइयों ने इनको हमें अपने पुत्र की भांति पाला और इनको आधुनिक शिक्षा में कही कोई कसर नहीं छोड़ी, ये बचपन से ही तीव्र दिमाग के थे जिसके कारण घर परिवार के सभी लोग इनसे उम्मीद पले बैठे थे की ये जरूर देश दुनिया में नाम करेगा, लेकिन ईश्वरीय शक्ति को तो कुछ और ही मंजूर था चुकी गुरुदेव के परिवार में सभी लोग मेडिकल क्षेत्र में है और स्वयं परमपूज्य गुरुदेव भी आईटी इंजीनियरिंग क्षेत्र से पढ़े है लेकिन इनका झुकाव कभी भी नौकरी की और नही गया , हां इन्होंने बिजनेस(आयुर्वेदिक दवा) के क्षेत्र में जरूर अपने को लगाया लेकिन यहां भी इनके माता कामख्या देवी की ओर झुकाव के कारण इनका मन इसमें नही लगा और गुरुदेव तंत्र मार्ग में अपने गुरु दीक्षित हो के गुरु शिष्य परंपरा के माध्यम से जुड़ गए और तंत्र मंत्र और साधना सिद्धि के बारीकियों को सीखने लगे और अपने गुरुदेव के सानिध्य में एक एक कर के महादेवियों को सिद्ध कर वर्ष 2020 में समाज कल्याण हेतु हम सभी के बीच में तांत्रिक गुरु शशि भैरव के रूप में प्रचलित हुए और समय समय पे देश दुनिया को अपने गुरु से प्राप्त आशीर्वाद और ज्ञान से हम सभी को प्रकाशित कर रहे है…

हमारे गुरुदेव की खासियत यही है की गुरुदेव किसी भी विषय को आज के विज्ञान से जोड़ के यानी तंत्र,मंत्र को सिर्फ किताबी या धार्मिक विषय नही मन के आपितु इसे आधुनिक विज्ञान के कसौटी पे रख के समझते है जिससे आप 100% संतुष्ट होंगे…

गुरुदेव मन, कर्म और वचन में समानता की बात करते है, यानी साधक वही है जो सदेव अपने मन को, वचन को और कर्म को सभी काल परिस्थिति में समान रखता है, यानी मन अच्छा तो वाणी अच्छा और वाणी अच्छा तो कर्म करने का आनंद मिलता है…

गुरुदेव कहते है ईश्वर का कोई पता नहीं है, भगवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन जी को समझते है की अर्जुन ईश्वर का सभी जगह है यदि मानव अपने अंदर के बैठे ईश्वर को जागृत कर ले तो उसे मंदिर जाने की जरूरत नहीं है, सभी इस व्यक्ति के पास ही आएगा, अतः मन यानी आत्मा ही हमारा भगवान है और ये हमारे इसी हार मांस से बने शरीर में निवास करता है लेकिन तभी तक जब तक ये शरीर है अतः इसकी यात्रा तो उसके बाद का भी है वास्तविक में इसी को समझना तंत्र विद्या है जो जन्म, मरण और इसके बाद के रहस्य को बड़े ही आसानी से हमे समझता है, इसी गुप्त और रहस्यमयी विद्या को जन जन तक पहुंचाना मां कामाख्या तंत्र साधना केंद्र का लक्ष्य है…

हमारे स्वयंसेवक एवं सहायक

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सहायक

त्रिशूलनाथ